| April 18, 2024

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Chitransh worship Chitragupta Puja on Yam Dwitiya

Chitransh worship Chitragupta Puja on Yam Dwitiya

Chitransh worship Chitragupta puja on Yam Dwitiya, this puja also known as Dawat Puja. On the day of “Yam Dwitiya (second day after Dipawali)”, Chitransh worship Chitragupta puja. Chitragupta Maharaj is a Hindu god. His task is to keep complete records of human beings on the earth. Upon their death, Chitragupta Maharaj has the task of deciding heaven or the hell for the humans, depending on their good work or bad work on the earth.

Chitragupta Maharaj was born from Lord Brahma’s body, or kaya in Sanskrit, Brahma declared that his children would forever be known as Kayasthas. Chitragupta Maharaj has two wives Shobavathi and Nandini and twelve sons named as follows: Srivastava, Surajdwaj, Bulmik, Asthana, Mathur, Gaud, Bhatnagar , Saxena, Ambasht, Nigam, Karna and Kulshreshth.

Chitransh worship Chitragupta puja today

Chitragupta Temple Khajuraho

चित्रगुप्त पूजा व्रत कथा (Chitragupta Pooja Vrat katha)

सराष्ट्र में एक राजा हुए जिनका नाम सदास था. राजा अधर्मी और पाप कर्म करने वाला था. इस राजा ने कभी को पुण्य का काम नहीं किया था. एक बार शिकार खेलते समय जंगल में भटक गया. वहां उन्हें एक ब्रह्मण दिखा जो पूजा कर रहे थे. राजा उत्सुकतावश ब्रह्ममण के समीप गया और उनसे पूछा कि यहां आप किनकी पूजा कर रहे हैं. ब्रह्मण ने कहा आज कार्तिक शुक्ल द्वितीया है इस दिन मैं यमराज और चित्रगुप्त महाराज की पूजा कर रहा हूं. इनकी पूजा नरक से मुक्ति प्रदान करने वाली है. राजा ने तब पूजा का विधान पूछकर वहीं चित्रगुप्त और यमराज की पूजा की.
काल की गति से एक दिन यमदूत राजा के प्राण लेने आ गये. दूत राजा की आत्मा को जंजीरों में बांधकर घसीटते हुए ले गये. लहुलुहान राजा यमराज के दरबार में जब पहुंचा तब चित्रगुप्त ने राजा के कर्मों की पुस्तिका खोली और कहा कि हे यमराज यूं तो यह राजा बड़ा ही पापी है इसने सदा पाप कर्म ही किए हैं परंतु इसने कार्तिक शुक्ल द्वितीया तिथि को हमारा और आपका व्रत पूजन किया है अत: इसके पाप कट गये हैं और अब इसे धर्मानुसार नरक नहीं भेजा जा सकता. इस प्रकार राजा को नरक से मुक्ति मिल गयी.

चित्रगुप्त महाराज की आरती

जय चित्रगुप्त यमेश तव, शरणागतम शरणागतम।
जय पूज्य पद पद्मेश तव, शरणागतम शरणागतम।।
जय देव देव दयानिधे, जय दीनबन्धु कृपानिधे।
कर्मेश तव धर्मेश तव, शरणागतम शरणागतम।।
जय चित्र अवतारी प्रभो, जय लेखनी धारी विभो।
जय श्याम तन चित्रेश तव, शरणागतम शरणागतम।।
पुरुषादि भगवत अंश जय, कायस्थ कुल अवतंश जय।
जय शक्ति बुद्धि विशेष तव, शरणागतम शरणागतम।।
जय विज्ञ मंत्री धर्म के, ज्ञाता शुभाशुभ कर्म के।
जय शांतिमय न्यायेश तव, शरणागतम शरणागतम।।
तव नाथ नाम प्रताप से, छुट जायें भय त्रय ताप से।
हों दूर सर्व क्लेश तव, शरणागतम शरणागतम।।
हों दीन अनुरागी हरि, चाहे दया दृष्टि तेरी।
कीजै कृपा करुणेश तव, शरणागतम शरणागतम।।

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