चम्पारण सत्याग्रह के 100 साल फिर भी किसान की हालत बेहाल
हमारा देश चम्पारण सत्याग्रह के 100 वी वर्षगाठ मना रहा है पर आजादी के 68 साल बाद भी किसान की जो हालत है वह किसी से छुपी नहीं है! आये दिन किसानो के आत्महत्या की खबरे आती रहती है! पर हमारी राज्य और केंद्र सरकार इसके लिए कोई मजबूत कदम नहीं उठा रही है!
बिहार सरकार ने 10 अप्रैल को चम्पारण शताब्दी समारोह की शुरुआत की, जो की अगले वर्ष बिहार दिवस तक चलेगा! और उसी दिन उसी चम्पारण की धरती पे 2 चीनी मिल मजदूर के अपने ऊपर आग लगा के आत्मदाह की कोशिश के किस्मे एक मजदूर की मौत हो गई! हमारे देश में गाँधी जी के दिखाए गए मार्ग की बहुत बात होती है, हर राजनितिक पार्टी ये दिखने की कोशिश करती है की वह गांधी जी के बताये रास्तो पर चल रही है पर सच तो यह है की यह सब बस एक दिखाबा है अगर सच में राजनितिक पार्टी उनके मार्ग पे चल रही होती तो आज हमारे किसानो को ये हालत नहीं होती!
जब किसान अपने हक़ के लिए आंदोलन करते है तो खास कर विपक्षी पार्टी उनके आंदोलन में साथ देने जरूर पहुँचती है! पिछले के दिनों से तमिलनाडु के किसान दिल्ली के जंतर मंतर पे आंदोलन कर रहे है पर उनकी कोई पूछने बाला नहीं! मीडिया भी इस पे कोई फोकस नहीं दे रही है, अगर यही किसी जाती के द्वारा आरक्षण के माँग को ले कर आंदोलन हो रहा होता तो हर न्यूज़ चैनल पे पुरे दिन यही खबर आ रही होती! जंतर मंतर में राहुल गाँधी भी किसानो के समर्थन में पहुंचे, पर अगर राहुल गाँधी और उनकी पार्टी किसानो का हित चाहती तो आज उनकी ये हालत नहीं होती! किसान अपने मृत साथियो के कंकाल को ले कर धरना दे रहे है, केंद्र सरकार के जल्द से जल्द इस और ध्यान देना चाहिए, केंद्र सरकार के तमिल किसानो के लिए कुछ पैकेज की घोषणा की है पर ये ऊंट के मुँह में जीरे के सामान है! केंद्र सरकार ने किसानों के लिए फसल बीमा योजना की शुरुआत की है,पर सरकार को कुछ और कदम उठाने होंगे जिससे की हमारे अन्नदाता को खुदखुशी करने की जरुरत ना हो!
आज ये हालत है डॉक्टर अपने बच्च्चे को डॉक्टर , इंजीनियर अपने बच्चे को इंजीनियर बनाना चाहते है पर कोई भी किसान अपने बच्चे को किसान बनाना नहीं चाहता है!
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