जहानाबाद में बच्चे की मौत बिहार के अस्पताल की व्यवस्था की हकीकत दिखाती है
जहाँ पूरी दुनिया करोना वायरस से लड़ रही है, वहीँ बिहार के जहानाबाद में सरकारी अस्पताल की कूव्यवस्था के कारण तीन साल के एक मासूम की मौत हो गई है। जहानाबाद सरकारी अस्पताल ने बच्चे को पटना रेफर किया पर इमरजेंसी की हालत में भी एक गरीब परिवार को एंबुलेंस नहीं मुहैया करा सका। बच्चा मां की गोद में तड़पता रहा, पिता एंबुलेंस के लिए इधर से उधर भटकता रहा। घंटा गुजर गया, बच्चे की हालत खराब होती गई, मां मदद की भीख मांगती रही और बच्चे ने दम तोड़ दिया।
अमूमन ये हालत बिहार के सभी अस्पताल का है। चाहे वह बिहार का सबसे बड़ा अस्पताल PMCH ही क्यों ना हो। सरकारी अस्पताल के पास प्राइवेट एम्बुलेंस की भीड़ लगी होती है। सरकारी अस्पताल में सिटी स्कैन, ऑल्ट्रासॉउन्ड आदि की सुबिधा शायद ही होती है। मरीज को प्राइवेट लैब में जाना होता है। आपातकालीन स्थिति में उन्हें प्राइवेट लैब में जाने के लिए प्राइवेट एम्बुलेंस की सेवा लेनी परती है। मरीज लाने के एवज में प्राइवेट लैब बाले एम्बुलेंस चालाक को कमीशन देते है।
विश्व विख्यात गणितज्ञ डॉ वशिष्ठ नारायण सिंह के मौत के बाद पीएमसीएच ने शव वाहन उपलब्ध नहीं कराया था। ऐसी कई घटना है जो बिहार सरकार के अस्पतालों के व्यवस्था की पोल खोलती है। पिछले साल मुज़फ़्फ़रपुर और इसके आस पास चमकी बुखार से 125 से ज्यादा बच्चे मर गए, लू लगने के कारण औरंगाबाद में 60 से ज्यादा की मृत्यु हो गए थी। गर्मी सुरु हो गया है, एक बार फिर चमकी बुखार का खतरा है, देखते है सरकार इस बार कितनी सतर्क है?
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