आरक्षण विकास के लिए या राजनिति के लिए
आप किसी भी धर्म जाती के क्यों ना हो मगर ये एक ऐसा मुद्दा है जिसपे सब अपने अपने विचार जरूर देते है, ओ है आरक्षण का मुद्दा ! हमारे देश में आरक्षण एक गम्भीर मुद्दा है, पर कोई भी राजनितिक पार्टी इसके विरोध में नहीं जाना चाहती ! ये आप सभी बिहार चुनाव में देख चुके है ! RSS प्रमुख मोहन भगवत के आरक्षण के समीक्षा की बात को लालू यादव ने कैसे उपयोग किया, लालू यादव ने आरक्षण का लाभ ले रही जातियों को ये समझाने में कामयाब रहे की अगर BJP सरकार में आए तो आरक्षण खत्म कर देगी ! और इसका फायदा महागठबंधन हो हुआ भी ! बिहार चुनाव प्रचार में नरेंद्र मोदी को भी आरक्षण के समर्थन में आगे आना पड़ा !
हमें सोचना होगा क्या सच में आरक्षण से हमारे समाज का भला हो रहा है ? आरक्षण का लाभ ज्यादातर सम्बृद्ध परिवार ही उठा पते है ! इसका सबसे अच्छा उदाहरण तो आप सब ने अभी देखा ही होगा, अंकित श्रीवास्तव, टीना डाबी से जयादा अंक ला के भी UPSC के प्रारंभिक परीक्षा में असफल रहे ! हमारे आस पास कुछ उच्च जाती के ऐसे भी लोग है जिनकी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है पर उन्हें आरक्षण का लाभ नहीं मिल सकता, और दलित समाज के कुछ ऐसे भी लोग है जिनकी आर्थिक स्थिति ठीक है पर ओ आरक्षण का लाभ ले रहे है !
हमारे देश में समय समय पे किसी न किसी जाती के लोग आरक्षण की मांग करते देखे जाते है इसके लिए ओ आंदोलन भी करते है ! पर कही न कही इसके पीछे राजनितिक लोग होते ही है चाहे ओ हरियाणा में जाट आरक्षण की मांग हो या गुजरात में पटेल आरक्षण की ! गुजरात और हरियाणा सरकार के आरक्षण देने की बात मान ली है ! गुजरात में 6 लाख वार्षिक से कम कमाने बालों को भी आरक्षण का लाभ मिलेगा चाहे ओ किसी भी जाती के हो ! इससे भी वही होगा जो अभी तक होता आया है, जो सच में जो आरक्षण के हकदार है उन्हें इसका लाभ नहीं मिलेगा ! 6 लाख की जगह अगर 1.5 लाख होता तो सच में जिन्हे आरक्षण की जरुरत है उनकी जरुरत पूरी हो सकती थी ! हमारा समाज जातिवाद से घिरा है, चुनाव में राजनितिक पार्टिया जाती देख कर ही अपने उम्मीदवार चुनती है, जहां जिस जाती के ज्यादा वोटर होते है उसी जाती का उम्मीदार चुनती है !
मैं जीतन राम माझी और चिराग पासवान की तारीफ करता हु जिन्होंने दलित समाज से अपील की है की सम्पन्न दलित आरक्षण न ले ! जीतन राम माझी ने तो खुल के मोहन भागवत का समर्थन किया है और ओ आरक्षण के समीक्षा के पक्ष में है ! अगर हमारा समाज सच में अपनी अपनी जाती को सम्बृद्ध करना चाहता है तो उन्हें आरक्षण के समीक्षा का समर्थन करना चाहिए ! सम्बृद्ध परिवार आरक्षण का लाभ ले के अपने ही समाज को हानि पंहुचा रहे है ! आरक्षण आमदनी के आधार पर दिया जाये चाहे किसी भी जाती या धर्म के हो और जिन्हे एक बार आरक्षण मिल जाये उनके बेटा या बेटी को इसका लाभ ना मिले तो ज्यादा से ज्यादा जरूरतमंदों को आरक्षण का लाभ मिल पाएगा ! समीक्षा की बात होते ही, ख़ास कर दलित समाज में ये भ्रम फैलाया जाता है की उनका हक़ छीन लिया जायेगा, नितीश कुमार भी ये कह रहे है की अगर 2019 में मोदी आपस सत्ता में वापस आये तो आरक्षण समाप्त कर देंगे, और मोदी तो पहले ही कह चुके है, मेरे जीते जी कभी आरक्षण ख़त्म नहीं होगा ! सभी राजनितिक पार्टिया आरक्षण के नाम पे अपना वोट बैंक बढाती है ! अगर जरुरत मन्दो को आरक्षण का लाभ मिल गया होता हो आज इसकी कोई जरुरत ही नहीं परती !
एक उदाहरण देता हुँ, अगर किसी सरकारी ऑफिस के एक पद खली है और पद आरक्षित कोटे का हो, इस पद के लिए आरक्षित समाज के सम्पनन और पिछड़े दोनों तरह के लोग आवेदन दे तो किसके सफल होने के ज्यादा सम्भावना किसकी है ? यकिनम जो सम्पनन है ! अगर आरक्षण का उद्देश सभी जाती के लोगो को प्रतिनिधि देना है तो जैसा चल रहा है ठीक है , पर आरक्षण पिछड़ी जातियों के विकास के लिए दिया जा रहा है तो इसमें बदलाब की जरुरत है !
देश की राजनीती को देखते हुए आरक्षण को हटना सम्भब नहीं है, पर अगर कुछ संसोधन किये जाये तो यक़ीनन इससे जरूरतमंदों को फायदा होगा:-
1. एक परिवार में केबल एक सदस्य को ही आरक्षण का लाभ मिले !
2. परिवार के आर्थिक आधार पे आरक्षण दिया जाये, जिस परिवार की वार्षिक आमदनी 1.5 लाख़ से कम हो उसे ही आरक्षण दिया जाये !
3. अगर वार्षिक आमदनी 1.5 लाख़ की सीमा तये नहीं कर सकते तो, अभी जिस समुदाय को जितना आरक्षण मिल रहा है उसमे से 70 % उस समाज के उन लोगो के लिए आरक्षित किये जाये जिनकी वार्षिक आमदनी 1.5 लाख़ से काम है! इससे जिस समुदाय को कितना आरक्षण मिल रहा है मिलता रहेगा !
4. आर्थिक आधार पे पिछड़े मुस्लिमो और दूसरे धर्म के लोगो को भी आरक्षण मिले !
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Reservation should be given on the basis of economic basis .caste and religion should be abolished in Constitution firstly after that any type of plan should be on basis of economic form for good development.
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