जातिगत जनगणना पर केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा- यह मुश्किल काम
बिहार के साथ साथ उत्तर प्रदेश समेत कई अन्य राज्यों में भी राजनीतिक दलों ने इस तरह की मांग की है।हालांकि, केंद्र की ओर से लगातार इसको टाला ही गया।
महाराष्ट्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर मांग रखी है कि कोर्ट केंद्र और संबंधित प्राधिकार को निर्देश दे कि वह राज्य को एसईसीसी 2011 में दर्ज ओबीसी के जातीय आंकड़ों को उपलब्ध कराए। इस मामले में केंद्र सरकार ने हलफनामा दायर कर सुप्रीम कोर्ट में कहा है कि 2011 में सामाजिक, आर्थिक और जातिगत जनगणना की गई थी, लेकिन उसमें कई त्रुटियां थीं। केंद्र सरकार ने कहा है कि पिछड़े वर्ग की जातिगत जनगणना प्रशासनिक दृष्टि से कठिन काम है। नीतिगत फैसले के तहत इस तरह की जानकारी को जनगणना के दायरे से बाहर रखा गया है।
केंद्र सरकार ने अपने जवाब में साफ किया है कि पिछली जनगणना का डाटा किसी आधिकारिक इस्तेमाल के लिए नहीं है, ना ही इसे सार्वजनिक किया गया है. ऐसे में जाति से जुड़े मसलों पर राज्य सरकारें इसका इस्तेमाल नहीं कर सकती हैं. केंद्र का कहना है कि इस डाटा में गलतियां हैं, साथ ही कई जातियों के एक समान नाम कई तरह की दिक्कतें पैदा कर सकते हैं।
बिहार के पक्ष-विपक्ष के राजनीतिक दलों की अगुवाई करते हुए नीतीश कुमार ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलकर जातिगत जनगणना की मांग रखी थी। पीएम ने इसपर विचार करने का आश्वासन भी दिया था। इस बीच जातिगत जनगणना के मुद्दे पर केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट ने अपना रूख स्पष्ट कर दिया है। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर कर कहा है कि वह जातिगत जनगणना के पक्ष में नहीं है।
Submit a Comment